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पापा की कली - लेखनी प्रतियोगिता -22-Apr-2022

प्रेम भरे आंगन में खिली मैं नन्हीं कली
पापा की गोद व माँ के आँचल में पली।

चांदी का पालना था व सोने का संसार
गम न था, बस जीवन में अतुलित प्यार।

पापा मुझे सदैव थे पलकों पर बिठाते
परी को अपनी कली-सा नाजुक बताते।

दुख की छाया कभी मेरे पास आने न देते
राह में बिछा फूल, काँटों पर खुद चल लेते।

माँ का ममता का आँचल था मेरा रक्षक
नजर न लगा सकता मुझे कोई भक्षक।

कली धीरे-धीरे खिलकर जब बनी फूल
दिल की उमंग ने पकड़ी थी अजीब तूल।

अब फूल पर मंडराने लगे थे भँवरे अनेक 
ना भाया कोई, दिल माँगे था राजकुमार एक।

राजकुमार-सा एक दिन मिला एक मानव
सौंप दिया सर्वस्व, पर निकला वह दानव।

मेरे अस्तित्व को उसने रौंदा इस कदर
अत्याचारों की मचा दी मुझ पर गदर।

दहेज का था लोभी व पिता को लूटता
 ना माँगू धन तो मुझे पूरी तरह कूटता।

पिता सोचते उनकी कली का जीवन सुखमय
अचानक जाना सच्चाई दुख से फटा हृदय।

मेरी दुर्दशा सह न पाए दिल पर हुआ आघात
पिता की मृत्यु से मुझ पर हुआ वज्रापात।

आत्मा ने झकझोर कहा क्यों बनती है अबला
नारी के अंदर काली है जिससे डरे हर बला।

पापा की कली ने उस दिन रौद्र रूप धरा 
अत्याचारी को दिया कर्मों का जवाब खरा।

नारी शक्ति देख दानव का दिल था दहला
अपना अस्तित्व बनाने का कदम था पहला।

पापा का सपना अब मेरा बन गया सपना
हर अनाथ कली को उपवन देना था अपना।

अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना सिखाया
जीवन के अनुभवों से उनको यह पाठ पढ़ाया।

लगता था मानो देख पिता कर रहे हों गर्व
आशीष संग था उनका, हर दिन लगता पर्व।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल

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14 Comments

Zainab Irfan

25-Apr-2022 03:23 PM

बहुत ही खूबसूरत

Reply

Zakirhusain Abbas Chougule

24-Apr-2022 11:46 PM

Bahut khoob

Reply

Dr. Arpita Agrawal

24-Apr-2022 12:01 AM

आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया, हार्दिक आभार 😊😊😊

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